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राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक पुनरुत्थान की कीमिया है महानायक आज़ाद की अहं ब्रह्मास्मि


सैन्य विद्यालय के छात्र एवं यशस्वी फ़िल्मकार महानायक आज़ाद द्वारा सृजित विश्व इतिहास में देवभाषा संस्कृत में निर्मित मुख्यधारा की सर्वप्रथम फ़िल्म अहं ब्रह्मास्मि को भारतीय संस्कृति और राष्ट्रवाद के पुनरुत्थान की कीमिया के रूप में देखा और सराहा जा रहा है । अहं ब्रह्मास्मि के सागर मंथन से मेगास्टार के रूप में एक सनातनी महानायक का जन्म हुआ, जिसका नाम है आज़ाद | आज़ादी के बाद जहाँ देश को अपने मूल गौरव की ओर लौटना था, और इंडिया को सनातन भारत एवं विश्वगुरु के रूप में पूरे विश्व में पुन: प्रतिष्ठित होना चाहिए था वहीं भारत, न्यस्त स्वार्थ और राजनीति की भेंट चढ़ गया । दिन-ब -दिन निर्बल दुर्बल होकर दीन-हीन-श्रीहीन होता गया । जो देश कभी सोने की चिड़िया के नाम से जाना जाता था वो महान राष्ट्र देशी-विदेशी आक्रांताओं की भेंट चढ़ गया । धर्म और संस्कृति के चिर शत्रुओं से कलुषित इतिहास लिखवाकर भारत के स्वर्णिम अतीत से भरतवंशियों को काट दिया गया । सत्ता का निर्लज्ज खेल चलता रहा और राष्ट्र्पुत्रों का वैभव समाप्तप्राय होने लगा । ऐसे समय में राष्ट्रवाद की प्रचंड उद्घोषणा के साथ राष्ट्रपुत्र का आगमन हुआ ।

सैन्य विद्यालय के छात्र एवं राष्ट्रवादी सनातनी फ़िल्मकार मेगास्टार आज़ाद ने भारतीय सिनेमा के आधार स्तम्भ बॉम्बे टॉकीज़ एवं राष्ट्रवादी सनातनी निर्मात्री कामिनी दुबे द्वारा निर्मित फ़िल्म राष्ट्रपुत्र के ज़रिए दस्तक दी और भारतवर्ष का पूरा परिदृश्य ही बदलने लगा । फ़्रान्स के विश्व विख्यात कान फ़िल्म फ़ेस्टिवल में राष्ट्रपुत्र के जयघोष से ऊर्जस्वित होकर वीर रस के महानायक आज़ाद ने अपने राष्ट्रधर्म के निर्वहन के लिए देवभाषा संस्कृत की पहली मुख्यधारा की कालजयी फ़िल्म अहं ब्रह्मास्मि का सृजन किया और राष्ट्रवाद की भावना को युगधर्म ही बना दिया । सनातनी कलाकार और मेगास्टार आज़ाद ने साबित कर दिया कि जब कलाकार के हृदय में राष्ट्रवाद की आँधी चलती है तो विराग विजड़ित समाज अपनी शीत निद्रा से जाग जाता है। देश में राष्ट्रवादी सरकारें भी बनती हैं, तीन तलाक़ के साथ अनुच्छेद ३७० और ३५ ए भी कालवाह्य हो जाते हैं ।

शत्रुओं के घर में घुसकर उनका समूल विनाश भी किया जाता है । सत्ता-गिद्धों का पराभव होता है और प्रजाहंस सत्ता के केंद्र में होते हैं । आज महानायक आज़ाद और उनकी कृति अहं ब्रह्मास्मि के कारण ही पूरे देश में संस्कृत के माध्यम से संस्कृति की यात्रा शुरू हो चुकी है एवं सम्पूर्ण देश में जयतु संस्कृतं का जयघोष हो रहा है | सरकारें संस्कृत को अनिवार्य विषय के रूप में पाठ्यक्रम में शामिल कर माँ भारती के प्रति अपनी निष्ठा का परिचय दे रही हैं । देश- काल में जो भी सत्यम, शिवम, सुंदरम घटित हो रहा है उसके पीछे निश्चित ही अहम ब्रह्मास्मि का उच्चार और उद्घोष एक प्रमुख कारक बनकर उभरा है । यह तय है कि आनेवाली पीढ़ियाँ भास, कालिदास, शुद्रक और विष्णु शर्मा की अगली पीढ़ी के नायक-चिंतक एवं सर्जक के रूप में लेखक, निर्देशक एवं नायक मेगास्टार आज़ाद को याद करेंगी । इतिहास के अपराधों का हिसाब संस्कृत की एकाघ्नी से करेंगे सनातनियों के सनातनी महानायक, आज़ाद

जयतु जयतु संस्कृतम


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