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राजनारायण दुबे और बॉम्बे टॉकीज़ की कहानी - अध्याय 1


राजनारायण दुबे

'द बॉम्बे टॉकीज़ स्टूडियोज़' और 'बॉम्बे टॉकीज़ घराना' की ऐतिहासिक सफलता में जितना सहयोग और समर्पण हिमान्शु राय और देविका रानी का रहा, उससे कहीं अधिक सहयोग और समर्पण इस कम्पनी में भारतीय सिनेमा जगत के पहले पूर्णरूपेण फाइनेन्सर, संस्थापक, प्रेरणास्रोत और 'द बॉम्बे टॉकीज़ स्टूडियोज़' 'बॉम्बे टॉकीज़ पिक्चर्स' 'द बॉम्बे टॉकीज़ लिमिटेड' 'बॉम्बे टॉकीज़ लेबरोटरीज़' 'बॉम्बे टॉकीज़ पब्लिसिटी हाउस' के साथ ही हज़ारों टेक्नीसियन्स, निर्देशक, लेखक, कलाकार, गायक, गायिका, संगीतकार देने वाले 'बॉम्बे टॉकीज़ घराना' के मुखिया राजनारायण दूबे का रहा।


राजनारायण दूबे ने ऐसे समय में हिमान्शु राय के साथ आर्थिक रूप से जुड़ने का निर्णय लिया, जब कोई भी व्यक्ति सिनेमा में पैसा लगाने को तो क्या सोचने तक की हिम्मत नहीं करता था।


१० अक्टूबर, १९१० को कालीघाट, कलकत्ता (अब कोलकाता) में जन्में राजनारायण दूबे तीन भाइयों में सबसे छोटे थे। मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बनारस जिले के रहने वाले राजनारायण दूबे के दादा ब्रम्हदेव दूबे और उनके पिता बद्रीप्रसाद दूबे बरसों पहले कलकत्ता जाकर बस गये थे और कलकत्ता के साथ ही बम्बई में भी अपने कारोबार को समानान्तर रूप से स्थापित किया था। अपने पूर्वजों के शहर बनारस से भी उनका रिश्ता निरन्तर बना हुआ था। वहाँ गांव के सगेसम्बन्धियों के बीच भी उनका आना-जाना, मिलना-जुलना नियमित रूप से जारी रहता था। राजनारायण दूबे के बड़े भाई श्रीनाथ दूबे सरकारी आयुर्वेदाचार्य थे, उन्हें 'आयुर्वेदरत्न' से भी सम्मानित किया गया था। दूसरे भाई गिरीश नारायण दूबे की आकस्मिक मौत, १९२० में मात्र बारह बरस की आयु में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान कलकत्ता में गंगा नदी से गाय के बछड़े को बचाने के दौरान दुर्भाग्यपूर्ण रूप से हुई थी।


दो साल बड़े भाई की आकस्मिक मौत की वजह से राजनारायण दूबे का मन अशान्त सा हो गया था। परिणाम यह हुआ कि उनका मन पढ़ाई में नहीं लगता था। गम्भीर व्यक्तित्व के मालिक राजनारायण दूबे को भाई की याद उद्वेलित करती रहती थी। वह कलकत्ता से कहीं दूर जाना चाहते थे। भावनात्मक तनाव की वजह से पिता के लाख प्रयासों के बावजूद वह बड़ी मुश्किल से कलकत्ता के बेहद प्रतिष्ठित एवं चर्चित 'हिन्दू स्कूल', जिसकी स्थापना '१८१७' में महान समाज सुधारक 'राजा राममोहन राय' ने की थी, उस ऐतिहासिक स्कूल से दसवीं की पढ़ाई पूरी की और आगे की पढ़ाई करने से इन्कार कर दिया। फिर एक दिन काफी सोच विचार के बाद पूरे आत्मविश्वास के साथ पिता से अपना व्यवसाय शुरू करने के लिए बीस हजार रुपयों की मांग की। जिस तरह से राजनारायण दूबे ने अपने पिता से पैसे की मांग की थी उस आत्मविश्वास को देखकर उनकी पढ़ाई बीच में छोड़ देने से नाराज़ सेठ बद्री प्रसाद को आश्चर्य के साथ खुशी भी हुई। वह अपने बेटे के गम्भीर व्यक्तित्व से भी वाकिफ थे, पर उन्होंने राजनारायण दूबे को पैसा देने से इनकार कर दिया।


बेटे को मायूस होते देख पिता ने राजनारायण को बड़े प्यार से समझाया कि यदि वह उन्हें बीस हज़ार रुपये देंगे तो परिवार के अन्य सदस्यों को भी रुपये देने होंगे, क्योंकि उस ज़माने में संयुक्त परिवार की परम्परा के अनुसार किसी एक सदस्य को जितना पैसा दिया जाता था, उतना ही परिवार के बाकी सदस्यों को भी देना पड़ता था। इसलिए उन्होंने राजनारायण को बड़े प्यार से समझाया कि, "मै समझ सकता हूँ कि तुम स्पष्टवक्ता हो, तुम्हारी सोच साफ है, तुम कोई अच्छा ही काम करोगे मगर परिवार के अन्य सदस्य भी पैसे लेकर कोई अच्छा काम ही करेंगे और वो पैसे को बरबाद नहीं करेंगे, इस बात को कैसे स्वीकारा जा सकता है? पिता की बात सुनकर राजनारायण ने जवाब दिया, "ठीक है, मगर बीस रुपये तो मिल ही सकते हैं?" बेटे की बात सुनकर, उसकी भावनाओं को समझते हुए उन्होंने राजनारायण दूबे को अपनी आराध्या माँ काली के मन्दिर 'कालीघाट' में ले जाकर दर्शन करवाया और माँ काली के सामने ही पिता बद्रीप्रसाद दूबे ने उन्हें बीस रुपए दे दिए। माँ काली का आशीर्वाद और काली के मन्दिर में पिता के द्वारा मिले बीस रुपए लेकर राजनारायण दूबे सन् १९२७ में बम्बई आ गए। नियति के सिवा किसी को नही पता था कि राजनारायण दूबे को पिता द्वारा माँ काली के दरबार में मिले, वह बीस रुपये भविष्य में अरबों का साम्राज्य खड़ा करने के साथ ही भारतीय सिनेमा जगत की बुनियाद 'बॉम्बे टॉकीज़' के रूप में कभी न खत्म होने वाली इबारत लिखने जा रहे थे।

Rajnarayan dube - Pillar of Indian Cinema

राजनारायण दूबे का परिवार बनारस तथा बम्बई का सम्पन्न और देशभक्त परिवार रहा है। दादा ब्रह्मदेव दूबे लोकप्रिय पहलवान रहे। वह अपने गांव बाबा विश्वनाथ की नगरी बनारस (वाराणसी, काशी) में रहकर पहलवानी किया करते थे और युवाओं को पहलवानी के गुर सिखाकर नये पहलवान भी तैयार किया करते थे। सन् १८९२ में उनके एक मित्र राम खेलावन चौधरी उन्हें अपने साथ लेकर बम्बई आए और फिर उन्हें अपने साथ ही लेकर पुणे चले गए। राम खेलावन चौधरी ने ब्रह्मदेव दूबे को पुणे के महान स्वतन्त्रता सन्ग्राम सेनानी चाफेकर बन्धुओं को पहलवानी सिखाने का काम सौंप दिया।


ब्रह्मदेव दूबे पुणे में रहकर अमर शहीद 'चाफेकर बन्धुओं और अन्य युवाओं को पहलवानी सिखाने लगे थे, मगर थोड़े समय बाद ही ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ आज़ादी का नारा बुलन्द करने वाले चाफेकर बन्धुओं ने मिलकर अंग्रेज अफसर रैण्ड समेत दो लोगों को मौत के घाट उतार दिया, जिसकी वजह से अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें गिरफ्तार कर देशद्रोह के आरोप में फांसी पर चढ़ा दिया। चाफेकर भाइयों की फांसी के बाद ब्रह्मदेव दूबे अंग्रेजी हुकूमत की धर-पकड़ से बचने के लिए भेष बदल कर देश के कोने-कोन में छिपते रहे और जब माहौल शान्त हो गया तब वह अपने बेटे बद्रीप्रसाद सहित पूरे परिवार को लेकर कलकत्ता चले गए, कालान्तर में उनके बाकी बेटे बनारस वापस आ गए पर उनके बड़े बेटे बद्रीप्रसाद ने कलकत्ता में ही रहकर अपना कारोबार शुरू किया और बाद में वह अपने कारोबार को बम्बई तक विस्तार कर मुख्यालय भी वहीं बनाया और कलकत्ता रहने के दौरान ही कालीघाट में ब्रह्मदेव दूबे के बेटे सेठ बद्रीप्रसाद दूबे के यहां तृतीय संतान के रूप में 'बॉम्बे टॉकीज घराना के प्रेरणास्रोत 'द बॉम्बे टॉकीज़ स्टूडियोज़' जैसी ऐतिहासिक सिनेमा कम्पनी की बुनियाद रखने वाले राजनारायण दूबे का जन्म सोमवार, १० अक्टबर १९१० को धनु राशि में केतु की महादशा में हुआ और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उस वक्त बुद्धि के कारक बुध अपनी उच्च अवस्था में थे, और उस उच्च के बुध ने जीवनभर राजनारायण दूबे का साथ दिया।

पिता सेठ बद्रीप्रसाद से बीस रुपए और माँ काली का आशीर्वाद लेकर राजनारायण दूबे ने बम्बई पहुंचकर सबसे पहले फ़ोर्ट के एक बैंक में अपना अकाउन्ट खोला और “दूबे इण्डस्ट्रीज़' के नाम से अपना व्यवसाय शुरु किया।


रात-दिन की मेहनत, लगन और कड़े संघर्ष से उन्होंने फाइनेन्स और शेयर ट्रेडिंग के कारोबार में सफलता हासिल की, १९३१ में मरीन लाइन्स में 'दूबे हाऊस' को अपना मुख्य कार्यालय बनाया। बचपन में पिता सेठ बद्रीप्रसाद और दादा ब्रह्मदेव दूबे से मिले अनुभवों और माँ काली के आशीर्वाद से 'दूबे इण्डस्ट्रीज़' के मालिक राजनारायण दूबे शेयर्स, फाइनेन्स तथा ट्रेडिंग की दुनिया में शीघ्र ही एक बहुचर्चित तथा प्रतिष्ठित नाम बन गया।


'दूबे इण्डस्ट्रीज़' फाइनेन्स, सड़क और भवन निर्माण के क्षेत्र में लोकप्रिय नाम तो बन ही चुका था, इसी लोकप्रियता और ईमानदारी के दम पर उन्हें अहमदाबाद से अन्धेरी तक सड़क निर्माण के एक बड़े हिस्से के काम का मौका सरकार द्वारा मिला था, आज वही सड़क घोड़बन्दर रोड के नाम से भी जानी जाती है। निर्माण का काम भी शुरू हो गया था, मगर कुछ स्थानीय ठेकेदारों का स्वार्थ आड़े आ रहा था इसलिए उन्होंने उसका जमकर विरोध किया था। परिस्थितिवश राजनारायण दूबे की कम्पनी 'दूबे इण्डस्ट्रीज़' को सड़क निर्माण का काम रोक देना पड़ा था, क्योंकि माल सप्लाई करने वाले व्यापारियों और माल पहुंचाने वाले ट्रकों ने माल सप्लाई करना रोक दिया था। ऐसे में राजनारायण दूबे के एक परम मित्र मोहम्मद अहमद लकड़ावाला ने गुजरात से चालीस ट्रकों का प्रबन्ध करके उनके पास भेजा और तब कहीं घोड़बन्दर रोड का निर्माण कार्य पूरा हो सका था। यह वही लकड़ावाला थे जिनके बेटे युसुफ लकड़ावाला ने बम्बई में एम्पायर स्टूडियो बनवाया और सुनील दत्त समेत कई बड़े फिल्म निर्माताओं को फाइनेन्स भी किया।


Megastar Aazaad the first Nationalist Filmmaker of India
 

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