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सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का शंखनाद -अहम ब्रह्मास्मि


संस्कृत के महाकुम्भ का तीसरा दिन।भारतीय सिनमा के आधारस्तम्भ बॉम्बे टॉकीज़ एवं क्रांतियज्ञ में समिधा अर्पित करनेवाली महिला निर्मात्री कामिनी दुबे के द्वारा संयुक्त रूप से निर्मित सैन्य विद्यालय के छात्र यशस्वी सनातनी फ़िल्मकार आज़ाद के द्वारा सृजित मुख्यधारा की संस्कृत फ़िल्म अहम ब्रह्मास्मि के प्रदर्शन के तीसरे दिन भी शिवजी की नगरी भारत की सांस्कृतिक राजधानी काशी नगरी में संस्कृत के महाकुम्भ का वातावरण बना रहा।संस्कृत प्रेमी दर्शक लम्बी लम्बी क़तारों में खड़े होकर इस ऐतिहासिक घटना के साक्षी बनने को आतुर दिखे।ज्ञातव्य है कि काशी नगरी में विगत ६ सितम्बर को फ़िल्म अहम ब्रह्मास्मि का भव्य प्रीमीयर सम्पन्न हुआ था।सुबह -ए-बनारस में बनारस की पूरी-कचौरी की तरह अहम ब्रह्मास्मि भी हर गली में चर्चा का विषय बना रहा।संस्कृत और संस्कृति के पुरोधा अहम ब्रह्मास्मि देखने के लिए सपरिवार आइ पी सिगरा मॉल के मल्टीप्लेक्स में टिकट काउंटर पे खड़े दिखे।वीर रस के सुदर्शन नायक आज़ाद के साथ सेल्फ़ी लेते हुए गौरवान्वित दिखे।लम्बी काया और गुरु गम्भीर स्वर के नायक आज़ाद को घेरकर दर्शक समूह ने संस्कृत फ़िल्म के उज्जवल भविष्य की पटकथा लिख रहे थे।

फ़िल्मकार और नायक आज़ाद अपनी कृति को दर्शकों को समर्पित कर अपने कला-कर्म के माध्यम से माटी का ऋण चुकाने का प्रयास करते दिखे।बाबा विश्वनाथ की नगरी हर हर महादेव,पार्वतीपतये नम:के उद्गारों-उच्चारों से आज़ादमय हो चुका है।आज़ाद के एक एक संवाद पर दर्शक अभिभूत होकर सीटियाँ बजा रहे थे,तालियों से स्वागत कर रहे थे।अहम ब्रह्मास्मि काशीवाशियों के लिए एक धार्मिक आयोजन जैसा था।काशीवाशियों का उत्साह और संस्कृत के प्रति निष्ठा आज़ाद जैसे समर्पित और राष्ट्रवादी फ़िल्मकारों के लिए किसी संजीवनी से काम नहीं है।


जयतु जयतु संस्कृतम।

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